डी.पी. रावत
अखण्ड भारत दर्पण (ABD NEWS)
आनी, हिमाचल प्रदेश।
“हर महीने का राशन — हर परिवार का अधिकार!
लेकिन क्या हिमाचल के राशन डिपो होल्डर इस अधिकार को ईमानदारी से आम जनता को दिला रहे हैं?
हिमाचल प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System - PDS) वह मजबूत कड़ी है जो पहाड़ों के दूरस्थ गांवों तक सरकार की कल्याण योजनाओं को पहुंचाती है।
कुल 5,000 से अधिक फेयर प्राइस शॉप्स (Fair Price Shops – FPS) या कहें "राशन डिपो" राज्य के हर पंचायत और वार्ड में खाद्य सुरक्षा की रीढ़ बने हुए हैं।
इन डिपो में हर माह गरीब परिवारों, मजदूरों और बुजुर्गों को सस्ते दरों पर चावल, आटा, चीनी, दालें, नमक और तेल मिलता है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या ये वितरण उसी पारदर्शिता से होता है जैसा नियमों में लिखा गया है?
नियम क्या कहते हैं?
हिमाचल प्रदेश सरकार ने “Himachal Pradesh Food Security Rules, 2019” और “Specified Essential Commodities (Regulation of Distribution) Order, 2019” के तहत राशन वितरण की पूरी व्यवस्था तय की है।
इन नियमों के अनुसार—
हर FPS होल्डर को हर महीने के पहले दिन से आखिरी दिन तक राशन वितरण जारी रखना होता है।
डिपो को कम से कम 25 दिन खुला रखना अनिवार्य है।
प्रत्येक पात्र लाभार्थी (NFSA कार्डधारक) को 5 किलो अनाज प्रति व्यक्ति प्रति माह, और Antyodaya परिवार को 35 किलो प्रति माह मिलना चाहिए।
सभी वितरण ई-POS मशीन के माध्यम से बायोमेट्रिक सत्यापन के बाद ही किए जाते हैं, ताकि फर्जीवाड़ा न हो।
डिपो पर हर महीने का स्टॉक, दर सूची, लाभार्थियों की सूची, और खुलने का समय साफ तौर पर प्रदर्शित होना चाहिए।
यदि कोई डिपो इन नियमों का उल्लंघन करता है — तो विभाग उसे नोटिस जारी कर सकता है, लाइसेंस निलंबित कर सकता है या स्थायी रूप से रद्द भी।
जमीनी सच्चाई : नियम बनाम व्यवहार
ABD न्यूज़ की गुप्त संवाददाता की टीम ने कुल्लू, आनी, निरमण्ड और चम्बा ज़िलों में कुछ राशन डिपो का जायज़ा लिया।
कई जगहों पर डिपो व्यवस्थित रूप से खुल रहे थे, लाभार्थियों को बायोमेट्रिक मशीन से वितरण मिल रहा था।
लेकिन कुछ पंचायतों में वास्तविकता नियमों से काफी दूर दिखाई दी।
संगीता देवी (ग्रामीण उपभोक्ता, आनी) बताती हैं –
“कभी-कभी मशीन नहीं चलती तो राशन अगले हफ्ते मिलता है।
कुछ डिपो वाले महीने में सिर्फ़ 5-6 दिन खोलते हैं, बाक़ी समय ‘सप्लाई नहीं आई’ कहकर बंद कर देते हैं।”
डिपो होल्डर का पक्ष
डिपो होल्डर भी अपनी मजबूरियाँ बताते हैं।एक डिपो संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा —
“सप्लाई डिपो से समय पर नहीं आती। कभी ट्रक देर से पहुंचते हैं, कभी सर्वर डाउन रहता है। हम चाहते हैं कि हर महीने समय पर बांटें, लेकिन कभी-कभी परिस्थितियाँ साथ नहीं देतीं।”
कई डिपो होल्डरों का कहना है कि कम कमीशन दरें, ई-POS मशीन की तकनीकी गड़बड़ियां, और ऑनलाइन रिपोर्टिंग का दबाव उनके लिए चुनौती है।
राज्य सरकार फिलहाल FPS कमीशन ₹90 प्रति क्विंटल के आसपास देती है, जो पहाड़ी इलाकों में परिवहन लागत के हिसाब से बहुत कम है।
विभागीय दृष्टिकोण
हिमाचल प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का कहना है कि —
“राज्य में 100% ई-POS प्रणाली लागू है, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित हुई है।
प्रत्येक FPS का डेटा ऑनलाइन सर्वर पर रिकॉर्ड होता है।
यदि कोई डिपो समय पर नहीं खुलता, या अनियमितता करता है, तो निरीक्षण रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाती है।”
विभागीय अधिकारियों का मानना है कि अधिकांश FPS अब डिजिटल हो चुके हैं और राशन वितरण में भ्रष्टाचार की संभावना कम हुई है।
हालांकि, दुर्गम क्षेत्रों में नेटवर्क की दिक्कतें और वितरण में देरी अभी भी एक बड़ी चुनौती है
ऑडिट और पारदर्शिता
नियमों के तहत हर FPS पर “सामाजिक ऑडिट” अनिवार्य है।यानि ग्राम सभा या उपभोक्ता समिति को यह अधिकार है कि वे डिपो का रिकॉर्ड देखें —
कितना राशन आया, कितना बांटा गया, और कितना बचा है।
पर ज़मीनी स्तर पर यह सामाजिक ऑडिट नाम मात्र का रह गया है।
कई गांवों में उपभोक्ताओं को यह भी नहीं पता कि उन्हें ऐसा अधिकार है।
डिजिटल निगरानी – उम्मीद की किरण
राज्य सरकार ने “Annapurna Portal” और मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से FPS डेटा को पारदर्शी बनाने की पहल की है।अब कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल से देख सकता है कि उसके नाम से कितना राशन जारी हुआ।
यह व्यवस्था भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
फिर भी, नेटवर्क की समस्या और बुजुर्ग लाभार्थियों की डिजिटल अनभिज्ञता के कारण यह व्यवस्था पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाई है।
नियम तोड़ने पर सख्त कार्रवाई
अगर कोई डिपो होल्डर—
राशन समय पर नहीं बांटता,
गलत मात्रा देता है,
लाभार्थी से अतिरिक्त पैसा वसूलता है,
या दुकान कई दिनों तक बंद रखता है,
तो विभाग उसे कारण बताओ नोटिस जारी करता है और डिपो रद्द भी किया जा सकता है।
कुछ मामलों में प्रशासन ने एफआईआर तक दर्ज की है, ताकि लोगों के हक़ से खिलवाड़ करने वालों पर सख्त संदेश जाए।
जनता की उम्मीद और सुधार की राह
राशन प्रणाली केवल सरकारी नीति नहीं, बल्कि गरीब आदमी का पेट है।यह व्यवस्था तभी सफल है जब डिपो होल्डर, विभाग और जनता तीनों मिलकर पारदर्शिता बनाए रखें।
आज जरूरत है कि —
1. राशन वितरण की तय तिथि पंचायत स्तर पर सार्वजनिक की जाए।
2. सामाजिक ऑडिट को अनिवार्य और सक्रिय किया जाए।
3. डिपो होल्डरों को वाजिब कमीशन और समय पर सप्लाई मिले।
4. डिजिटल साक्षरता बढ़ाई जाए ताकि हर व्यक्ति अपना डेटा स्वयं देख सके।
निष्कर्ष : हक़ का राशन — ईमानदारी की डोर
हिमाचल का पहाड़ी भूगोल, सीमित सड़कें और डिजिटल चुनौतियाँ — यह सब व्यवस्था को कठिन बनाते हैं।
फिर भी, सरकार और जनता अगर अपने-अपने कर्तव्य निभाएं, तो “राशन” सिर्फ़ एक योजना नहीं बल्कि हर घर की इज़्ज़त और अधिकार बन सकता है।
“एक थैला चावल का नहीं,
वो विश्वास का राशन है —
जो सरकार से नहीं,
ईमानदारी से मिलता है।
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